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Thursday, 8 September 2016

ऐना कैरेनिना ~गुलज़ार साहिब~

"वर्थ" जो सेंट है मिट्टी का
"वर्थ" जो तुमको भला लगता है
"वर्थ" के सेंट की खुश्बू थी थियेटर में,
             गयी रात के शो में,
तुमको देखा तो नहीं,सेंट की खुश्बू से
            नज़र आती रही तुम !
दो दो फिल्में थीं,बयक वक्त जो पर्दे पे र'वां थीं,
पर्दे पर चलती हुयी फिल्म के साथ,
और इक फिल्म मेरे जहन पे भी चलती रही !

'एना'के रोल में जब देख रहा था तुमको,
'टॉयस्टॉय'की कहानी में हमारी भी कहानी के
                  सिरे जुड़ने लगे थे--
सूखी मिट्टी पे चटकती हुई बारिश का वह मंजर,
घास के सोंधे,हरे रंग,
जिस्म की मिट्टी से निकली हुयी खुश्बू की वो यादें--

मंजर-ए-रक्स में सब देख रहे तुम को,
और मैं पाँव के उस ज़ख्मी अंगूठे पे बंधी पट्टी को,
शॉट के फ्रेम में जो आई ना थी
और वह छोटा अदाकार जो उस रक्स में
बे वजह तुम्हें छू के गुज़रता था,
जिसे झिड़का था मैंने !
मैंने कुछ शाट तो कटवा भी दिए थे उस के

कोहरे के सीन में,सचमुच ही ठिठुरती हुयी
                     महसूस हुयीं
हाँलाकि याद था गर्मी में बड़े कोट से
उलझी थीं बहुत तुम !
और मसनुई धुएँ ने जो कई आफतें की थीं,
हँस के इतना भी कहा था तुमने !
"इतनी सी आग है,
और उस पे धुएँ को जो गुमां होता है वो
                 कितना बड़ा है "
बर्फ के सीन में उतनी ही हसीं थी कल रात,
जिसनी उस रात थीं,फिल्म के पहलगाम से
                  जब लौटे थे दोनों,
और होटल में ख़बर थी कि तुम्हारे शौहर,
सुबह की पहली फ्लाईट से वहाँ पहुँचे हुए हैं.

रात की रात,बहुत कुछ था जो तबदील हुआ,
तुमने उस रात भी कुछ गोलियाँ कहा लेने की
                    कोशिश की थी,
जिस तरह फिल्म के आखिर में भी
"एना कैरेनिना"
ख़ुदकुशी करती है,इक रेल के नीचे आ कर--!

आखिरी सीन में जी चाहा कि मैं रोक दूँ उस
                     रेल का इंजन,
आँखे बंद कर लीं,कि मालूम था वह'एन्ड'मुझे!
पसेमंजर में बिलकती हुयी मौसीकी ने उस
                रिश्ते का अन्जाम सुनाया,
जो कभी बाँधा था हमने !

"वर्थ" के सेंट की खुश्बू थी,थिएटर में,
                गयी रात बहुत !