I♥ COFFEE....I ♥TEA...!

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Wednesday 7 May 2014

तू माने या न माने दिलदारा...

रब बंदे दी जात इक्को
ज्यों कपड़े दी जात है रूं
कपड़े विच ज्यों रूं है लुकया
यूं बंदे विच तू
आपे बोलें आप बुलावे
आप करे हूँ हूँ

तू माने या न माने दिलदारा
असां ते तेनू रब मनया
दस होर केडा रब दा दवारा
असां ते तेनू रब मनया

अपने मन की राख उड़ाई
तब ये इश्क की मंजिल पाई
मेरी साँसों का बोले इकतारा

तुझ बिन जीना भी क्या जीना
तेरी चैखट मेरा मदीना
कहीं और न सजदा गवारा

हँसदे हँसदे हर गम सहना
राजी तेरी रजा में रहना
तूने मुझको सिखाया ये यारा

अर्थात् परमात्मा ओर आत्मा की एक ही जात है। जैसे कपड़े में रूई छुपी है वैसे ही आत्मा में परमात्मां। वो आप ही कहता है आप ही सुनता है आप ही होने की हामी भी भरता है।
तू माने या न माने हमने तुझे रब/ईश्वर मान लिया है तू ही बता और अब कौन से द्वार पर जायें।
अपने मन को राख की तरह बना उड़ा दिया है तब हमने इश्क की यह मंजिल पाई है मेरे सांसों का इकतारा तेरी ही धुन निकालता है।
हंसते हंसते खुशी गम सहना, तेरी मर्जी की मुताबिक रहना ये तूने ही मुझे सिखा दिया है।